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13 साल बाद बीरान हुआ चिड़ियाघर, अब नहीं सुनाई देगी दहाड़

 कानपुर का चिड़ियाघर अब नहीं सुन सकेगा बाघिन त्रुसा की दहाड़

19 वर्षीय त्रुषा की कैंसर से हुई मृत्यु

पिछले कई समय से चल रहा था इलाज


कानपुर का चिड़ियाघर  अब तृषा की आवाज नहीं सुन पाएगा,, लंबे समय से बीमार चल रही त्रुशा ने  चिड़ियाघर के अस्पताल में दम तोड दिया।

 2010 उषा को कानपुर लाया गया था तृषा ने अब तक 14 शावको को जन्म दिया था,, देशभर में बाघों की जनसंख्या बढ़ाए जाने के मामले में कानपुर के चिड़ियाघर का नाम तृषा की वजह से ही जाना जाता था।

आपको बताते चलें कि अमूमन बाघ की उम्र 16 से 17 साल होती है लेकिन त्रुषा ने ढाई साल ज्यादा जीवन जिया, दिसंबर में तृषा बीमार हो गई थी उसके बाद वह से लगातार वह बीमार बनी रही और अंत में वह कैंसर को मात न दे पाई ।

 तृषा का अंतिम संस्कार आज चिड़ियाघर के अंदर ही प्रोटोकॉल के अनुसार किया गया इसमें विशेष बात यह रही की त्रुषा का अंतिम संस्कार उसी के केयर टेकर से करवाया गया,,  रेंज ऑफिसर नावेद इकराम ने बताया कि त्रुषा की कमी पूरे चिड़ियाघर को बहुत खलेगी,, उन्होंने बताया कि त्रुषा और बाघों से बिल्कुल अलग थी क्योंकि वह अपने बच्चों को अलग तरीके से पालती थी।


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