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उरी हमले के 8 साल बाद भी बेहाल है शहीद का परिवार



 बलिया.जम्मू कश्मीर के उरी में हुए आतंकवादी हमले को आठ साल हो गए। जिसमें शहीद हुए जवानों में बलिया जिले के एक लाल राजेश कुमार यादव भी शहीद हुए थे। शहीद का घर बलिया शहर से दस किलोमीटर पूरब में स्थित दुबहड़ गांव में है, जहां आज भी सबके दिलों में शहीद राजेश कुमार यादव अमर हैं। इस हमले के जवाब में 8 साल पहले आज ही के 18 सितंबर 2016 सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी। जिसमे सेना के जवानों ने आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त किया गया था। इस हमले में हमारे देश के 16 जवान शहीद हुए थे। यहां अचानक रात को आतंकवादियों ने उड़ी बेस कैंप में घुसकर सो रहे जवानों पर गोलीबारी की थी जिसमें 16 परिवार से उनका चिराग बुझ गया। इस घटना में बलिया के  राजकुमार यादव ने सन 2002 में आर्मी ज्वाइन की थी तथा 2006 में लांस नायक के पद पर पदोन्नति होकर गुवाहाटी में ड्यूटी कर रहे थे। राजकुमार यादव एक गरीब परिवार से आते हैं, जहां उन्होंने गुवाहाटी से उड़ी जाते समय 17 सितंबर की रात्रि अपनी मां से बात की थी। पर किसे पता था कि यह बातचीत उनकी आखिरी बातचीत होगी। जहां उड़ी हमले में 18 सितंबर को वो शहीद हो गए। 

आज शहिद राजकुमार यादव की शहादत के 8 साल बाद उनका परिवार अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। बलिया जनपद के दुबहढ़ गांव में लांस नायक राजकुमार यादव का एक छोटा सा पैतृक मकान है। जहां उनके तीन भाई अपने परिवार और उनकी बुढ़ी मां के साथ रहते हैं। परिवार जनों का आरोप है कि राजकुमार यादव की शहादत के बाद उन तक मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं। राजकुमार यादव के तीन भाई हैं जो की मेहनत मजदूरी कर कर अपने परिवार और अपनी बुढ़ी मां का भरण पोषण करते हैं। यहां राजकुमार के बड़े भाई श्री भगवान यादव को उनकी मौत के बाद जल निगम में एक अ-स्थाई नौकरी ₹2000 प्रति माह की तनख्वाह पर दी गई थी। लेकिन 3 महीने बाद उनसे वह नौकरी भी छीन ली गई। ‌जिसके बाद पूरा परिवार मेहनत-मजदूरी कर अपना भरण पोषण करने को मजबूर है। शहीद राजकुमार यादव की तीन छोटी बच्चियां हैं जो जिला मुख्यालय पर अपनी मां के साथ किराए के मकान में रहकर पढ़ाई करती हैं। गांव में शिक्षा की उत्तम व्यवस्था न होने के उन्हें ऐसा करना पड़ता है। 

 राजकुमार यादव की बूढी मां का आरोप है कि राजकुमार की मौत के बाद उनको किसी प्रकार की सरकारी सुविधाओं से आच्छादित नहीं किया गया, जिससे उनके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। यहां भाइयों के पास राशन कार्ड तो है पर घर में गैस का उज्जवला कनेक्शन नहीं है। ‌जहां सिलेंडर खत्म हो जाने के बाद गरीबी के कारण गैस भरवाने के भी पैसे नहीं होते, जिसके कारण उन्हें मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी जलाकर खाना बनाना पड़ता है। लंबे समय तक गरीबी में जुझता हुआ यह परिवार मिट्टी के चूल्हे पर भोजन बनाने और मजदूरी कर कर गुजारा करने को मजबूर है। सरकार से उनकी पत्नी को ₹22000 पेंशन तो मिलती है पर वह पैसे उनकी छोटी-छोटी तीन बच्चियों को किराए के मकान में जिला मुख्यालय पर रखकर पढ़ने व उनकी पत्नी और बच्चों के भरण पोषण में ही खत्म हो जाते हैं। उन्होंने मांग की है कि सरकार उन्हें सरकारी सुविधाओं से आच्छादित करें जिससे उनका जीवन सुगमता से कट सके। 

 परिवार के अनुसार राजकुमार यादव की आखिरी बातचीत 17 सितंबर को उनकी मां से हुई थी जहां उन्होंने गुवाहाटी से कहीं और जाने और 10 दिनों के बाद बातचीत होने की बात कही थी। इसके बाद अगली सुबह टेलीविजन पर चल रही खबरों से उन्हें उनकी शहादत की जानकारी मिली। जिसके बाद उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया। बूढी मां बताती है कि राजकुमार की मौत के बाद घर का चिराग तो गया ही कमाई का हाथ भी टूट गया। 

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