बागपत का रावण उर्फ बड़ा गांव
दशमी तिथि को भगवान राम ने रावण का वध किया था इसीलिए इस दिन को विजयादशमी का पर्व भी कहते हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि बागपत के बड़ागांव में रावण के पुतले के दहन के बजाय दशहरे पर रावण की पूजा होती है। इस गांव के ग्रामीण रावण को अपना पूर्वज मानते हुए उसका पूजन करते है।
यहां नहीं होता रावण के पुतले का दहन, करते है रावण की पूजा।एक तरफ जहां भारत के कोने कोने में दहशरा के मौके पर रावण के पुतलों का दहन होता है। लेकिन बागपत के रावण उर्फ बड़ागांव के पुतले के दहन के बजाय दशहरे पर रावण की पूजा अर्चना होती है। और पुरे देश में हर साल दशहरे पर रावण का पुतला दहन किया जाता है। इस दिन को अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतीक के तौर पर भी मनाया जाता है।
दरअसल बता दे की दशमी तिथि को भगवान राम ने रावण का वध किया था। इसीलिए इस दिन को विजय दशमी का पर्व भी कहते हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि बागपत के रावण उर्फ बड़ागांव में रावण के पुतले के दहन के बजाय दशहरे पर रावण की पूजा होती है। इस गांव के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते है, और उसका पूजन करते हैं। इस गांव में रामलीला भी नही होती है। और राजस्व अभिलेखों में भी इस गांव का नाम रावण उर्फ बड़ागांव दर्ज है।
क्या है मंशा देवी मंदिर की कहानी ,
मनसा देवी की मूर्ति को लंका ले जाने के लिए रावण ने देवी मां की घोर तपस्या की और रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर रावण को वरदान मांगने के लिए कहा, तो रावण ने अपने वरदान में मनसा देवी को ही लंका ले जाने के लिए वरदान में मांग लिया, लेकिन मनसा देवी ने रावण के सामने शर्त रख दी की, जहां भी तुम इस प्रतिमा को रखोगे, यह वहीं पर विराजमान हो जायगी। मनसा देवी की इस शर्त को मानकर रावण मनसा देवी की प्रतिमा को लेकर आकाश मार्ग से लंका जा रहा था। तभी बीच रास्ते में रावण को लघु शंका लग गई । उधर मंशा देवी की प्रतिमा जाने के बाद देव लोक के देवताओं में हड़कंप मच गया। सभी देवता इकट्ठा होकर विष्णु भगवान के पास पहुंचे और उन्होंने मंशा देवी को रावण द्वारा श्री लंका में ले जाने की बात कही, जिस पर विष्णु भगवान ने एक ग्वाले का रूप बनाकर। बागपत के रावण उर्फ बड़ा गांव में एक बढ़ के पेड़ के निचे गाय चराने लगे। लघु शंका लगे रावण ने आकाश मार्ग से देखा की, ग्वाला गाय चरा रहा है। वह भूमि पर उतरा और ग्वाले को माँ मंशा देवी की प्रतिमा देते हुए कहा की, में लघु शंका से निवर्त होकर आ रहा हु। तब तक यह प्रतिमा अपने हाथों पर रखना, इसे जमीन पर नहीं रखना है। यह कहकर रावण लघु शंका करने के लिए चला गया। लेकिन ग्वाले बने विष्णु भगवान ने प्रतिमा को जमीन पर रख दिया। और वह वहीं पर स्थापित हो गई । स्थापित होने के बाद रावण ग्वाले पर क्रोधित हुआ और उसने माँ मंशा देवी की प्रतिमा को उठाने का काफी प्रयास किया। लेकिन वरदान के अनुरूप प्रतिमा हिली नहीं, तो रावण माँ मंशा देवी को प्रणाम कर, वहां से चला गया। तभी से माँ मंशा देवी के मंदिर का यहा भव्य निर्माण हुआ, और यहां पर भगवान विष्णु के दस रूपो से सुशोभित प्रतिमा विराजमान है। जहां लोग अपनी मुराद लेकर आते है, और उनकी मुराद इस सिद्ध पीठ मंदिर में पूरी होती है।
