ज्ञानवापी ओर अयोध्या मंदिर जैसा विवाद अब बागपत के लाक्षागृह पर हुआ शुरू। न्यायालय में पहुचा मामला,12 सितम्बर को बागपत कोर्ट सुनाएगी अपना फैसला।
बागपत के बरनावा गांव स्थित बदरुद्दीन की मजार और लाक्षाग्रह को लेकर पिछले 50 साल से कोर्ट में मुकदमा चल रहा हैं। आगामी 12 सितंबर को इस मामले पर बागपत सिविल कोर्ट फैसला सुना सकता है। हिंदू पक्ष मजार को लाक्षागृह का हिस्सा बता रहा है। जबकि मुस्लिम पक्ष इस हिस्से को बदरुद्दीन की मजार और उसके आस पास उनके अनुयायी की कब्र बताता है। इस मामले को लेकर 1970 में मुकीम खा ने वर्ष 1970 में मेरठ सिविल कोर्ट में वाद दायर किया था, जो अब तक बागपत कोर्ट में चल रहा है।
आपको बता दे कि बरनावा गांव निवासी मुकीम खा ने वर्ष 1970 में वाद दायर करते हुए मेरठ अदालत से मालिकाना हक की मांग उठाई थी। अलग जिला बनने के बाद ये मामला बागपत कोर्ट में ट्रांसफर हो गया था जो अब सिविल कोर्ट में विचाराधीन है। मुकीम खान ने टीले पर बदरुद्दीन शाह की दरगाह और मजार होने का दावा किया था। जो सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बतोर वक्फ प्रोपर्टी रजिस्टर्ड है। मामले में ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया गया था। जिसमे आरोप लगाया था की कृष्ण दत्त इसे खत्म कर हिंदुओं की तीर्थ बनाना चाहते है। जबकि कृष्णदत्त ने दावा किया था, की प्राचीन टीला और मजार लाक्षा गृह का हिस्सा हैं। जहा कोई भी मजार और कब्रिस्तान कभी नही रहा।
टीले की कुछ भूमि का एएसआई सर्वेक्षण ने अधिग्रहण कर रखा है। शेष भूमि पर गांधी आश्रम समिति द्वारा महानद संस्कृत विद्यालय का संचालन हो रहा हैं। पिछले 50 साल से चल रहे विवाद का अब निपटारा होने की उम्मीद है। अब मामला फैसले की सुनवाई की तरफ बढ़ रहा है। जिसमे 12 सितंबर को फैसला होना तय माना जा रहा है।