भाई-बहन के महापर्व पर भद्रा का साया
31 अगस्त को प्रात: 05.29 बजे से 07.07 बजे तक सबसे उत्तम समय
- 30 अगस्त को प्रात:10. 58 बजे लगेगी पूर्णिमा रात 09.02 बजे तक भद्रा
30 को रात 09.02 बजे के बाद या 31 को सवा सात बजे से पहले बांधी जा सकती है राखी
इस बार रक्षा बंधन का पर्व भद्रा के साए में मनाए जाने की स्थिति बन रही है। ऐसे में 30 और 31 अगस्त दोनों दिन राखी बांधने का त्योहार मनाया जा सकता है। ज्योतिषा चार्य देवस्य मिश्र बताते हैं कि इस वर्ष 30 अगस्त को प्रात:10. 58 बजे श्रावण पूर्णिमा तिथि लगने के साथ ही भद्राकाल शुरू हो जाएगी। जो रात 09 बजकर 02 मिनट तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार भद्राकाल के दौरान रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है। 31 अगस्त को सुबह 07.07 बजे तक ही पूर्णिमा रहेगी। ऐसे में या तो 30 को रात 09.02 बजे के बाद या 31 को सवा सात बजे से पहले राखी बांधी जा सकती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित देवस्य मिश्र ने बताया कि रात में राखी बांधना उतना अच्छा नहीं होता है। इसलिए 31 अगस्त को 05.29 मिनट पर सूर्योदय से लेकर सुबह 07.07 बजे तब राखी बांधने का सबसे उत्तम समय है। कारण यह कि इस वर्ष 30 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा तिथि के साथ भद्राकाल शुरू हो जाएगी। 30 अगस्त को भद्रा रात 09 बजकर 02 मिनट तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार भद्राकाल के दौरान रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है। राखी हमेशा ही भद्रा रहित काल में ही बांधना शुभ माना गया है। वहीं राखी बांधने के लिए श्रावण पूर्णिमा तिथि में दोपहर का समय सबसे शुभ समय होता है। लेकिन इस साल रक्षाबंधन के त्योहार की श्रावण पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त से लग रही है और पूरे दिन भद्रा का साया रहेगा। इस तरह से 30 अगस्त को दिन के समय रक्षाबंधन का मुहूर्त नहीं रहेगा। 30 अगस्त को भद्रा रात 09 बजकर 02 मिनट तक रहेगी। ऐसे में 30 अगस्त को रात 09 बजकर 02 मिनट के बाद राखी बांधी जा सकती है।
भद्रा में क्यों वर्जित है रक्षा बंधन
- धार्मिक ग्रंथो के आधार पर पंडित देवस्य मिश्र ने बताया कि भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री का नाम था और भद्रा राजा शनि की बहन भी थी। जिस तरह शनिदेव को कठोर माना जाता है ठीक उसी तरह भद्रा भी अपने भाई शनि की तरह कठोर मानी जाती है। भद्रा के स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उन्हें काल गणना के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया था। इतना ही नहीं भद्रा की स्थिति में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है। पंडित देवस्य मिश्र बताते हैं कि एक बार ब्रह्मा जी ने भद्रा को श्राप दिया था कि जो भी भद्रा काल में किसी भी तरह का शुभ कार्य करेगा उसमें उसे सफलता नहीं मिलेगी। यही वजह है कि भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इसीलिए भद्रा काल में रक्षाबंधन नहीं बांधा जाता है।
कब होती है भद्रा
- ग्रंथों के अनुसार चंद्रमा की राशि से भद्रा का वास तय किया जाता है। गणना के अनुसार चंद्रमा जब कर्क राशि, सिंह राशि, कुंभ राशि या मीन राशि में होता है। तब भद्रा का वास पृथ्वी में निवास करके मनुष्यों को क्षति पहुंचाती है। वहीं मेष राशि, वृष राशि, मिथुन राशि और वृश्चिक राशि में जब चंद्रमा रहता है तब भद्रा स्वर्गलोक में रहती है एवं देवताओं के कार्यों में विघ्न डालती है। जब चंद्रमा कन्या राशि, तुला राशि, धनु राशि या मकर राशि में होता है तो भद्रा का वास पाताल लोक में माना गया है। भद्रा जिस लोक में रहती है वहीं प्रभावी रहती है।