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पूर्व विधायक ने मुकदमे को लेकर कही बड़ी बात

 टाइम सिटी कम्पनी के  धोखाधड़ी मामले में मेरा परिवार निर्दोष- चन्द्र प्रकाश शुक्ल

कम्पनी से पहले ही दे दिया था त्याग पत्रः न्यायपालिका पर पूरा भरोसा


 भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व विधायक चन्द्र प्रकाश शुक्ल ने टाइम सिटी कम्पनी में धोखाधड़ी मामले में दर्ज मुकदमें के  सम्बन्ध में कहा है कि वे और उनका परिवार पूरी तरह से निर्दोष है। उन्हें और उनके भाई दीप चन्द्र शुक्ल को षड़यंत्र पूर्वक फंसाया जा रहा है। उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। सच्चाई सामने आयेगी और उनके परिवार को न्याय मिलेगा। वे बुधवार को कप्तानगंज स्थित कार्यालय पर पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

पूर्व विधायक चन्द्र प्रकाश शुक्ल ने पत्रकारांें को बताया कि वर्ष 2010 में टाइम सिटी कम्पनी की शुरुआत पंकज कुमार पाठक, संतोष कुमार सिंह, सुशील कुमार मिश्रा और उनके साथ हुई थी जिसमें वे अवैतनिक डायरेक्टर थे।  कंपनी से अलगाव और उसके बाद के घटनाक्रमको देखते हुये उन्होने  सितंबर 2017 में अपनी राजनीतिक व्यस्तताओं के कारण कंपनी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद, पंकज कुमार पाठक चेयरमैन बन गए और कंपनी का संचालन करने लगे। सितंबर 2019 में उनके छोटे भाई दीप चन्द्र शुक्ल ने भी जमाकर्ताओं के भुगतान न होने के कारण कंपनी छोड़ दी और 2020 में इस्तीफा दे दिया। उनकेे भाई दीप चंद्र शुक्ल के पास कोई वित्तीय अधिकार नहीं था।

पत्रकारों के प्रश्नों का उत्तर देते हुये पूर्व विधायक चन्द्र प्रकाश शुक्ल ने बताया कि  इस्तीफे के बाद पंकज पाठक ने संतोष सिंह, सुशील मिश्रा, अशोक सिंह और रीना (कंपनी की जीएम) के साथ मिलकर लोगों को ठगना शुरू कर दिया। इन लोगों ने कंपनी के खातों से करोड़ों रुपये निकालकर अपनी संपत्ति बनाई और सैकड़ों एकड़ जमीन बर्बाद कर दी। एक साल के भीतर महंगी जमीनें, गाड़ियां और आलीशान मकान बनाए गए। टाइम सिटी ग्रुप की मल्टी स्टेट सोसाइटी के बैंक खातों से करीब 26 करोड़ रुपये पंकज ने अपनी पत्नी और साले के खातों में ट्रांसफर कर हड़प लिए गए। फैजाबाद और गोरखपुर में भी सोसायटी की करोड़ों की जमीन बेचकर जमाकर्ताओं का भुगतान नहीं किया गया।

बताया कि कुछ समय पहले संतोष कुमार सिंह ने उनके भाई, परिवार के सदस्यों और उनके  खिलाफ लखनऊ के गुडम्बा थाने में एक फर्जी मुकदमा दर्ज कराया था। जो पुलिस जांच में झूठा पाया गया और पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट  लगा दिया। मेरे त्यागपत्र के बाद इन व्यक्तियों ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का एक फर्जी लाइसेंस भी बनाया और बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार किया। निवेशकों द्वारा पंकज कुमार पाठक और उनके सहयोगियों के खिलाफ लखनऊ में 2 एफआईआर और 14 परिवाद, जबकि बाराबंकी में 9 एफआईआर और 26 परिवाद दर्ज किए गए हैं। बाराबंकी पुलिस ने पंकज कुमार पाठक को 7 दिसंबर 2024 को जेल भेजा था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 21 फरवरी 2025 को निवेशकों का पैसा वापस करने के निर्देश के साथ सशर्त जमानत दी थी, लेकिन भुगतान के लिए दी गई अधिकतर चेक बाउंस हो गईं। हाल ही में उच्च न्यायालय से सभी मामलों में जमानत मिलने के बाद पंकज पाठक ने कुछ निवेशकों से संपर्क किया और पैसा वापसी के बदले उन्हें और उनके भाई के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की शर्त रखी। इसी के परिणामस्वरूप गोरखपुर में पंकज पाठक के सहयोगियों प्रेम मोहन मौर्य, राजेंद्र यादव, आलोक श्रीवास्तव और राम मिलन मौर्य की मदद से तीन एफआईआर दर्ज की गई हैं। उन्होने स्पष्ट किया कि इस मामले में वे, उनके छोटे भाई और उनका  परिवार निर्दोष है।

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