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धुंधकारी की कथा सुन मंत्रमुग्ध हुये श्रोता

 जो पुत्र अपने माता पिता का अनादार करें वे धुंधकारी के समान

श्रीमद्भावत कथा ज्ञान यज्ञ



 जिसके चरित्र को देखने मात्र से ही घृणा हो वहीं धुंधकारी है। वह अपने कुकर्मो से प्रेत बनता है । गोकर्ण जैसा भाई और भागवत ही प्रेत योनि से मुक्ति दिला सकते हैं। जो पुत्र अपने माता पिता का अनादार कर दुराचार और पापाचार करते हुये समाज को कष्ट देते हैं वे सभी  धुंधकारी हैं।  धुंधकारी पांच वेश्याओं में फंस जाता है, शव्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध जीव को बांध लेते हैं। जिन हाथों से श्रीकृष्ण की सेवा न हो, जो हाथ परोपकार न करें वे हाथ शव के समान हैं। तन और मन को दण्ड दोगे तो पाप का क्षय होगा। श्रीमद्भागवत मुक्ति की कथा है। यह सद् विचार आचार्य अनिरूद्ध जी महाराज ने राजेश्वरी मिश्रा प्राकृतिक कृषि फार्म दुबखरा में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन व्यासपीठ से व्यक्त किया।
महात्मा जी ने कहा कि सत्य को समर्पित करने वाला ही सत्ता का अधिकारी है। सत्य स्वरूप परमात्मा के प्रति जब जीव का समर्पण होता है तभी कर्तव्य का ज्ञान होता है। महात्मा जी ने कलयुग के प्रवेश, धर्म के दुःखी होने, नारद के प्रयास और परमात्मा के अवतारों का विस्तार से वर्णन करते हुये कहा कि भागवत कथा के श्रवण से वासना की ग्रन्थियां टूटती है। वैकुण्ठ में जो आनन्द है वही भागवत कथा में मिलता है। मंगलाचरण के महत्व का विस्तार से वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि सत्कर्मो में अनेक विघ्न आते हैं। भगवान शिव का सब कुछ अमंगल है किन्तु उनका स्मरण मंगलमय है। उन्होने काम को जलाकर राख कर दिया, मनुष्य जब तक सकाम है उसका मंगल नहीं होता। ईश्वर के अनेक स्वरूप हैं किन्तु तत्व एक है। ध्यान करने से ईश्वर और जीव का मिलन होता है। जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश भी लीला है। कृष्ण गांधारी से मिलने गये तो गांधारी ने उन्हें शाप दिया कि तुम्हारे बंश में कोई भी नहीं रहेगा। इसमें भी श्रीकृष्ण आनन्दित है।
कथा का विस्तार से वर्णन करते हुये महात्मा जी ने आत्मदेव, गोकर्ण, धुन्धकारी और मंगलाचरण प्रसंगों पर प्रकाश डालते हुये कहा कि मांगने से प्रेम की धारा टूट जाती है। प्रभु से कुछ मत मांगो, ईश्वर को अपना ऋणी बनाओ। ईश्वर पहले हमारा सर्वस्व ले लेते हैं और फिर अपना सर्वस्व हमें दे देते हैं। गोपियांे ने भगवान से कुछ नहीं मांगा, गोपियों का प्रेम शुद्ध है। वे जब भी भगवान का स्मरण करती हैं तो ठाकुर जी को प्रकट होना पड़ता है। गोपाल शर्मा, लक्ष्मण, आशीष ने भक्ति गीतों से वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया।
श्रीमद्भागवत कथा के क्रम में मुख्य यजमान कर्नल के.सी. मिश्र, ने विधि विधान से व्यास पीठ का पूजन अर्चन किया। मुख्य रूप से मनीष सिंह, ऊषा सिंह, राजपति, अंकुर यादव, राधेश्याम यादव, रंजीत मिश्र, कर्नल मिथुन मिश्र, रामवृक्ष मिश्र, लालजी मिश्र, बजरंगी मिश्र, डा. सत्यनरायन मिश्र, डा. अवध नरायन मिश्र, दिग्विजय, रविन्द्र, आनन्द, कृष्ण कुमार पाण्डेय, आर.के. शुक्ल, सुशील मिश्र, आर.के. शुक्ल, आर.के. त्रिपाठी, कुसुम मिश्रा, अनुराधा पाण्डेय, सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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