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राज्य सरकार को कोर्ट ने लगाई कड़ी फटकार,5 लाख का लगाया जुर्माना

व्यर्थ में याचिका दायर करने पर राज्य सरकार पर पांच लाख का लगा हर्जाना 

4 सप्ताह में हरजाने की राशि जमा करने का आदेश

,राज्य सरकार की याचिका खारिज, 



इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट तक हार चुकी राज्य सरकार का अवार्ड निस्पादन कार्यवाही में डिग्री की वैधता की आपत्ति खारिज करने को अनुच्छेद 227 मे चुनौती देने की व्यर्थ की की दाखिल याचिका पांच लाख हर्जाने के साथ खारिज कर दी है और चार हफ्ते में हर्जाना जमाकर पांच हफ्ते में अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।


कोर्ट ने टिप्पणी की कि न्यायिक सिस्टम निष्पक्ष भेदभाव रहित विवाद के निपटारे के लिए है, ताकि वैयक्तिक अधिकार संरक्षित हो सके। आधारहीन दावे अस्वीकार करते समय देखा जाय कि वैध दावों की अनदेखी न होने पाये और लंबी कानूनी लड़ाई न चलने पाये।कोर्ट ने कहा कि न्यायिक सिस्टम व्यर्थ के विवादों से पटा पड़ा है। हर्जाना लगाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग रोकने का एक औजार भर है। लोगों का न्याय व्यवस्था पर भरोसा कायम रखने के लिए व्यर्थ की याचिका पर हर्जाना लगाना जरूरी है।

कोर्ट ने कहा न्याय की निष्पक्षता स्वच्छता व अखंडता कायम रहनी चाहिए।

कोर्ट ने कहा व्यर्थ की याचिका पर हर्जाना लगाना न केवल दंडात्मक है अपितु न्यायिक अखंडता का औजार है। वादकारी जवाबदेह बने,न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग न हो,इसके लिए हर्जाना लगाया जाना जरूरी है।

यह आदेश जस्टिस शेखर बी सर्राफ ने राज्य सरकार की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।

कोर्ट ने  कहा  कि आदेश के खिलाफ सरकार की विलंब की रणनीति पक्षकारों को उनके उचित अधिकारों से वंचित करके अन्याय को बढ़ावा देती है। 

मालूम हो कि प्रतिवादी राजवीर सिंह ने बिजनौर में मध्य गंगा नहर -द्वितीय परियोजना के तहत मुख्य नहर पर ड्रेनेज, साइफन के निर्माण के लिए अनुबंध किया। लेन-देन में विवाद होने पर एकल  मध्यस्थ नियुक्त हुआ। विभाग के अधिकारियों व विपक्षी की मिलीभगत दिखी।मध्यस्थ ने विपक्षी के पक्ष में अवार्ड दिया।धारा 34के तहत सरकार ने जिला जज के समक्ष चुनौती दी। खारिज होने पर हाईकोर्ट में प्रथम अपील दायर की।वह भी खारिज हुए तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एस एल पी दायर की।वह भी खारिज हो गई। पुनर्विलोकन अर्जी भी खारिज हो गई।यह पूरी कार्यवाही 2013 से 2019तक चली।2019मे अवार्ड के निस्पादन की  कार्यवाही शुरू की गई। एडीजे बिजनौर ने स्टेट बैंक को मध्य गंगा कैनाल निर्माण खंड के अधिशासी अभियंता का खाता सीज करने का आदेश दिया।मामला वाणिज्यिक अदालत मुरादाबाद स्थानांतरित कर दिया गया। 21 जुलाई 2022 को राज्य सरकार को अवार्ड का भुगतान करने का निर्देश दिया।तो सरकार ने धारा 47सी पी सी में आपत्ति की कि अवार्ड अधिकार क्षेत्र से बाहर दिया गया है।निष्पादन नहीं हो सकता।जो  देरी के आधार पर खारिज कर दी गई, जिसे अन्य आदेशों के साथ हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

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