आस्था की अनोखी परंपरा ,शादी का लाल जोड़ा पहनकर नवविवाहिता दुल्हन के रूप में सजकर करती हैं पूजा अर्चना। बस दो मुटठी मिटटी चढ़ाने से पूरी होती है मनोकामना।
qउत्तर प्रदेश के जनपद संभल से आस्था से जुड़ी एक अनोखी खबर सामने आई है। आपने पूजा अर्चना के तमाम तौर तरीके देखे होंगे। किसी मंदिर में छप्पन भोग तो कहीं किसी दूसरी तरह का प्रसाद चढ़ाया जाता है,लेकिन संभल में कुल गुरु को चढ़ाई जाती है दो मुटठी मिटटी। लोगों की आस्था है कि मिटठी चढ़ाने से कुलगुरु प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी करते हैं। आस्था की प्रतीक समाधि पर नमन करते हुए मिट्टी चढ़ाने की परम्परा सैंकड़ों सालों से चली आ रही है।
यह नजारा है उत्तर प्रदेश में जनपद संभल के भारतल गांव स्थित चाहल गौत्रीय जाटों के कुलगुरु संत जोगा सिंह के समाधि स्थल का। हर साल समाधि पर इसी तरह मेला लगता है और देश भर से चाहल गौत्रीय जाट अपने परिवार की नव वधुओं और नवजात बच्चों के साथ यहां पहुंचकर संत जोगा सिंह की समाधि पर मत्था टेकते हैं। चाहल गोत्रीय जाटों के जिन युवकों की शादी एक साल के दौरान हुई होती है वह अपनी पत्नी को शादी वाला लाल जोड़ा पहनाकर यहां लाते हैं और नव वधु से दो मुटठी मिटटी चढ़वाकर समाधि पर मत्था टिकवाते हैं। चाहल गोत्र के लड़के की जब शादी होती है तो उसकी पत्नी को चाहल समाज में शामिल होने के लिए उस खास दिन का इंतजार करना होता है जबकि समाधि पर मेला लगता है। चाहल गोत्र के कुलगुरु संत जोगा सिंह के बलिदान दिवस पर समाधि पर मिट्टी चढ़ाकर नव वधु विधिवत चाहल गोत्र में शामिल होती है। वह यहां मन्नत भी मांगी है, आपके आर्शीवाद से संतान पैदा होगी तो उसे लेकर अगले वर्ष तेरी समाधि पर मिट्टी चढ़ाने आऊंगी।
जानकारो का कहना है कि सिख समाज के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह ने अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़कर धर्म की रक्षा के लिए अपने सेनापति संत जोगा सिंह को संभल भेजा था। संभल भारत सिरसी गांव में उनकी समाधि बनी है। उनकी समाधि पर मिटटी चढ़ाकर पूजा अर्चना के लिए इस साल भी पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड समेत देश के कई राज्यों की नवविवाहिताएं पहुंचीं।