मनुष्य को निर्भय बनाती है भागवत कथा
संगीतमयी ढंग से भागवत महिमा का गान करते हुये महात्मा जी ने कहा कि बिना ईश्वर के संसार अपूर्ण है। परमात्मा श्रीकृष्ण परिपूर्ण आनन्द स्वरूप है। भागवत शास्त्र का आदर्श दिव्य है। गोपियों ने घर नहीं छोड़ा, स्वधर्म का त्याग नहीं किया फिर भी वे श्रीभगवान को प्राप्त करने में सफल रहीं। महात्मा जी ने कहा कि दुःख में जो साथ दे वह ईश्वर और सुख में साथ देना वाला जीव है। श्रीकृष्ण की वन्दना से पाप जलते हैं।
ज्ञान और वैराग्य का विश्लेषण करते हुये महात्मा जी ने कहा कि सात दिन के भीतर परीक्षित को मुक्ति मिली। निश्चित था कि ठीक सातवे दिन उनका काल आने वाला है किन्तु हम काल को भूल जाते हैं। वक्ता शुकदेव जी जैसा अवधूत और श्रोता परीक्षित जैसा अधिकारी हो तो मुक्ति मिल जाती है।
कथा महिमा का वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि भागवत कथा का आनन्द ब्रम्हान्नद से भी श्रेष्ठ है। योगी तो केवल अपना उद्धार करता है किन्तु सतसंगी साथ में आये सभी का उद्धार करते हैं। महात्मा जी ने देवर्षि नारद की वृन्दावन में भक्ति से भेंट, भक्ति का दुःख दूर करने के लिये नारद जी का उद्योग , भक्ति के कष्ट की निवृत्ति सहित अनेक प्रसंगो का विस्तार से वर्णन करते हुये महात्मा जी ने महर्षि व्यास के भागवत रचना के परम और मंगलकारी उद्देश्य पर प्रकाश डाला। गोपाल शर्मा, लक्ष्मण, आशीष ने भक्ति गीतों से वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया।
श्रीमद्भागवत कथा के क्रम में मुख्य यजमान कर्नल के.सी. मिश्र, राजेश्वरी मिश्रा ने विधि विधान से व्यास पीठ का पूजन अर्चन किया। मुख्य रूप से अखिलेश दूबे, कृष्ण कुमार पाण्डेय, आर.के. शुक्ल, सुशील मिश्र, आर.के. शुक्ल, आर.के. त्रिपाठी, कुसुम मिश्रा, अनुराधा पाण्डेय, सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।