भगवान को पाने के लिए भक्ति ज्ञान वैराग्य और त्याग सर्वोपरि - पं0 देवस्य मिश्र
दसकोलवा गांव में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का दूसरा दिन भक्ति और ज्ञान से परिपूर्ण रहा। प्रसिद्ध कथावाचक ज्योतिषाचार्य पं0 देवस्य मिश्र ने श्रोताओं को श्रीमद् भागवत महापुराण की महिमा का रसपान कराया। उन्होंने श्रोताओं को श्रीभगवान को पाने के लिए भक्ति ज्ञान वैराग्य और त्याग को सर्वोपरि बताया। पं0 देवस्य मिश्र जी ने बताया कि श्रीमद् भागवत महापुराण भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और तत्वबोध से भरा हुआ है। इस महापुराण के महात्म्य की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें तीन मुख्य संवाद, नारद और भक्ति संवाद, सनत कुमार और नारद संवाद व गोकर्ण और धुंधकारी संवाद के माध्यम से इसकी महिमा का विस्तार किया गया है। श्री मिश्र जी ने बताया कि पहले संवाद में अर्पण की कथा, दूसरे में समर्पण की कथा और तीसरे में तर्पण की कथा है। श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार जो कार्य समाज के लिए किया जाए वह अर्पण है, जो भगवान के लिए किया जाए वह समर्पण है, और जो पितरों के लिए किया जाए वह तर्पण कहलाता है। उन्होंने कहा कि जीवन में सत्य का ध्यान करना ही सबसे महत्वपूर्ण है, और यही सत्य भगवान कृष्ण का स्वरूप है। कथा के दौरान श्री मिश्र जी ने भागवत की मंगलाचरण की चर्चा की, जिसमें भगवान वेदव्यास द्वारा सत्य का ध्यान किया गया है। उन्होंने श्रोताओं को भगवान के 24 अवतारों की कथा से भी परिचित कराया, जिसमें गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों के आधार पर भागवत महापुराण की व्याख्या की गई है।
इस अवसर पर यजमान के रूप में राम कमल पाण्डेय तथा सावित्री देवी व परिवार के वीरेंद्र ओम प्रकाश सतीश चंद पाण्डेय, सुरेंद्र, चंद्रमणि, लाल साहब धर्मेंद्र पाण्डेय सहित सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।